दूसरे प्रदेशों से आ रहे मज़दूरों की दर्द भरी दास्‍तां….भूख बर्दाश्त न हुई तो कच्चे चावल भी भिगो कर खाए

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    10/5/2020 क्या बताऊं साहब…जिस रफ्तार से जिंदगी की गाड़ी चल रही थी उसी रफ्तार एक झटके में सबकुछ छिन गया…कोरोना के पहले जहां पत्नी पसंद का खाना बनाती थी वहीं बीते दिनों कच्चे चावल को पानी में गलाकर भूख को शांत करना पड़ा। घर में राशन था लेकिन गैस नहीं। बाहर निकलने की मनाही तो दूसरों की घर आने पर भी रोक। सबकुछ अस्त-व्यस्त सा हो गया।

    लोगों ने मदद भी की और पका-पकाया भोजन भी पहुंचाया लेकिन वह भी बांटते-बांटते थक गए। ऐसे में कभी-कभी ही दो वक्त का भोजन मिल पाता। अक्सर एक ही वक्त के भोजन से संतोष करना पड़ता। कुछ दिन बीता तो गैस मिल गई लेकिन फिर राशन की दिक्कत होने लगी। इस बीच ईश्वर ने राह दिखाई अचानक से घंटी बजी कि गोरखपुर जाना हो तो सात मई को ट्रेन लुधियाना से रवाना होने वाली है। यह सुनते ही भूख-प्यास सब काफूर हो गई। परिवार के साथ स्टेशन पहुंचा और घर आ गया। यह पीड़ा है लुधियाना से आने वाले उदयभान की।

    बीते तीन मई से विभिन्न राज्यों से विभिन्न शहरों से रोजाना श्रमिक स्पेशल से गोरखपुर पहुंच रहे हैं। आठ मई तक कुल 12 ट्रेनें आ चुकी थीं जिसमें 12424 श्रमिक गोरखपुर आ चुके थे। इन यात्रियों में बाहर जिले के यात्रियों को रोडवेज बसों से रवाना किया। बाहर से आने वाले श्रमिकों का आने का सिलसिला अभी चल ही रही रहा है।

    वहीं लुधियाना के श्रीप्रकाश का कहना है कि मन को बहुत समझाने के बाद गोरखपुर आया हूं। ये जानता हंू कि अब जीवन यापन आसान नहीं लेकिन अब इन्हीं आग के थपेड़ों में चलकर राह बनाना है। श्री प्रकाश का कहना है कि फैक्ट्री बंद हो जाने के बाद कोई उधार देने के लिए भी तैयार नहीं था। सभी को लग रहा था कि अब कुछ करता तो है नहीं पता नहीं पैसा वापस करेगा भी या नहीं।

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