पत्रकारों पर हमला और उनसे दुर्व्यवहार अच्छे संकेत नहीं।

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    पत्रकार एक शब्द, एक व्यक्ति या एक जिम्मेदारी?
    वास्तव में पत्रकार उस व्यक्ति को कहते हैं जो समसामयिक घटनाओं, लोगों, एवं मुद्दों आदि पर विभिन्न सूचनाओं को इकट्ठा करता है एवं जनता में उसे विभिन्न माध्यमों की मदद से पहुंचाता है। इस कार्य को पत्रकारिता कहते हैं। चाहे वह संवाददाता हो , स्तम्भकार हो, सम्पादक हो, फोटोग्राफर हो या फिर डिजाइनर ये सब भी पत्रकार ही हैं।
    असल ज़िन्दगी में पत्रकार बना व्यक्ति जनसंचार का काम कर रहा है। आज के इस संकट के दौर में ये काम बहुत पेचीदा नहीं होकर भी बहुत चुनौतीपूर्ण है।
    बीते कुछ समय से पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार उन पर हमला उनको मौत के घाट उतार देना इस तरह की बातें आम होती जा रही है। सवाल यही है क्या ऐसा क्यों हो रहा है?
    क्या आज की जनता सच सुनने को तैयार नहीं है? क्या आज का पत्रकार जबरदस्ती सच बनाने का प्रयास कर रहा है? क्या आज का पत्रकार पत्रकार की हैसियत से कार्य कर रहा है या एक सौदेबाज की हैसियत से? क्या पत्रकार से सब डरने लगे हैं? क्या पत्रकार पत्रकारिता के साथ इंसाफ नहीं कर रहा है? ऐसे ही अनेकों सवाल ज़हन में आते हैं।
    *अभी फौरन एक-दो दिन में जो घटनाएं हुई हैं उसमें गाजियाबाद के विजयनगर इलाके में कुछ अज्ञात बदमाशों ने पत्रकार विक्रम जोशी पर हमला किया था। हमले के इस सीसीटीवी फुटेज में विक्रम जोशी अपनी दो बेटियों के साथ मोटरसाइकिल से जा रहे थे। तभी बदमाशों ने उन्हें घेर लिया और गोली मारी।
    * दूसरी घटना प्रयागराज की है जहां थाने में पत्रकार की पिटाई की गई। प्रयागराज के सराय इनायत थाने में किसी प्रकरण को लेकर गये दो पत्रकार साथियों की पुलिस ने जमकर पिटाई की तथा उनका आईकार्ड भी छीन लिया और मार पीट कर घायल कर दिया । ये चिंताजनक और दर्दनाक है।
    पहले पुलिस प्रशासन और पत्रकार का चोली दामन का साथ होता था लेकिन पिछले कुछ सालों से यह तस्वीर बिल्कुल बदलती जा रही है आप आए दिन पुलिस द्वारा पत्रकारों पर अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं ऐसा क्यों हो रहा है?
    पत्रकार और पत्रकारिता की तस्वीर को बदलने में पिछले 6 सालों से सरकार का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है जिसमें उसने यह माहौल बना दिया है कि लोग ऐसा समझने लगे हैं कि पत्रकार और पत्रकारिता बिकाऊ है और इसके लिए दलाल शब्द का इस्तेमाल भी होने लगा है लेकिन याद रखना चाहिए कि पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती हैं।
    चाहे सरकार हो या प्रशासन दोनों को यह बात अच्छी तरह समझना चाहिए कि पत्रकारिता देश को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण साधन है इसलिए पत्रकारिता और पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार करना पूर्णतया अनुचित है।
    सामान्यतः लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं।
    न्यायपालिका
    कार्यपालिका
    विधायका
    मीडिया
    ईमानदारी के साथ आकलन कीजिए और देखिए पहले तीन स्तंभों में शामिल लोग कहां हैं और किन सुविधाओं के मालिक हैं। चौथा स्तंभ यानि मीडिया कहां है? वास्तविकता यह है कि चौथा स्तंभ बाकी तीनों स्तंभों के बीच पिस रहा है।
    इसलिए प्रशासन और सरकार से विनम्र अनुरोध यही है कि पत्रकार और पत्रकारिता को पूरा महत्व दिया जाए उनके मान, सम्मान और जान की रक्षा की जाए और उनकी सुविधाओं का ख्याल रखा जाए।
    जयहिंद

    सैय्यद एम अली तक़वी
    syedtaqvi12@gmail.com

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