अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के बेटे, बिरजिस कद्र की कहानी काफी दिलचस्प है। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1856 में अवध के राज्य को हड़पने के बाद, उनके पिता को गद्दी से उतार दिया गया था। इसके बाद, बिरजिस कद्र को वहां का नया नवाब बनने का दावा पेश किया गया. 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान, उनकी मां बेगम हज़रत महल ने उन्हें अवध का नवाब बना दिया और खुद उनकी रीजेंट (Regent – संरक्षक) बन गईं. हालांकि, कंपनी की फौजों के कड़े रुख के आगे उन्हें टिक पाना मुश्किल हो गया. लखनऊ पर मार्च 1858 में कब्जे के बाद, उन्हें नेपाल की राजधानी काठमांडू भागना पड़ा.
नेपाल में शरण लेने के बाद, बिरजिस कद्र एक शायर बन गए और उन्होंने “मुशायरे” (कवि सम्मेलन) आयोजित करना शुरू कर दिया। 1887 में, उन्हें अंग्रेजों द्वारा माफी दे दी गई और वह भारत वापस आ सके। वह कोलकाता के मेतियाब्रुज इलाके में रहने लगे, जहां उनके पिता को भी 1856 से निर्वासन और कारावास भुगतना पड़ा था. 1893 में उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। उनके पोते का दावा है कि उन्हें उनके ही रिश्तेदारों ने जहर देकर मार डाला था।