मिटती जा रही है ऐतिहासिक धरोहरें। खामोश है पुरातत्व विभाग और जिम्मेदारान। सैय्यद तक़वी
ऐतिहासिक इमारतें सिर्फ लखनऊ ही नहीं लगभग पूरे प्रदेश में मुख्तलिफ शहरों में पाई जाती हैं लेकिन वक्त के साथ-साथ इसकी तस्वीरें बदलती जा रही हैं और आने वाले वक्त में उसका निशान भी शायद मिट जाएगा जैसा कि लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों को देखकर होता है रूमी गेट के आसपास आज जो मंजर दिखाई देता है अगर पुरानी तस्वीरों से उसकी तुलना की जाए तो यह एहसास होता है कि उसके आसपास की कितनी ऐतिहासिक इमारतें जमींदोज हो गई और उसका कोई निशान बाकी नहीं है। वक्फ बोर्ड , हुसैनाबाद ट्रस्ट और पुरातत्व विभाग सब खामोश हैं किसी को अपने देश के इतिहास से प्रेम नहीं दिखाई दे रहा है
प्रदेश में कुल 122839 वक्फ संपत्तियां हैं। इनमें से ज्यादातर पर अवैध कब्जे हैं। यहां तक की बहुत सारी वक्फ की संपत्तियां सरकारी क़ब्जे में भी हैं।
आइए बात करते हैं लखनऊ की। हुसैनाबाद ट्रस्ट, ऐतिहासिक शाहनजफ इमामबाड़े की बदहाली को लेकर बेफिक्र है। इमामबाड़े के मुख्य परिसर का प्लास्टर जगह-जगह से प्लास्टर टूट चुका है और कई जगह दरारें भी आ गई हैं। लंबे समय से मरम्मत व रंगाई-पुताई न होने से यह स्थिति बनी है। इमारत खंडहर होती जा रही है।
हजरतगंज स्थित शाहनजफ इमामबाड़ा हुसैनाबाद ट्रस्ट के अधीन है और ऐतिहासिक स्मारक होने के साथ शिया समुदाय की धार्मिक आस्था का केंद्र है। यहां सिर्फ मुस्लिम नहीं बल्कि अन्य धर्म के मानने वाले भी माथा टेकने आते हैं, लेकिन ऐतिहासिक महत्व के इस स्मारक का कोई देखरेख करने वाला नहीं है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस इमारत में लंबे समय से कोई भी मरम्मत का काम नहीं किया गया है और ना ही हुसैनाबाद ट्रस्ट इसकी तरफ ध्यान दे रहा है।
शाहनजफ इमामबाड़े के परिसर में शादी के कार्यक्रम का आयोजन भी होता है जिसके एवज में अच्छा खासा किराया भी आता है लेकिन बावजूद इसके इस इमारत की मरम्मत का काम तो दूर रंग और रौगन का काम भी सही ढंग से नहीं होता। इमारत की इस जर्जर स्थिति से हर चाहने वाला चिंतित है। अभी कुछ दिन पहले ही शाहनजफ इमामबाड़े का बाहरी दर जो अचानक गिर गया था उस जगह पर घेराव कर दिया गया है लेकिन कब्जा करने वाले आज भी उस जगह पर अपना व्यवसाय कर रहे हैं । अंदर शाहनजफ कैंपस का हाल यह है कि शादी ब्याह और पाटिर्यों के चलते यहां शोर शराबा और खाना पीना भी चलता है। खाना बनाने के लिए भठ्ठियां जलती है और और उसे निकलने वाला धुआं ऐतिहासिक ईमारत को नुकसान पहुंचता है। सोने पर सुहागा यह है कि सरकार ने खुद शाहनजफ के गेट पर अतिक्रमण कर रखा है यहां पर निर्मित किया गया फव्वारा वहां के आवागमन को प्रतिबंधित करता है उस इमामबाड़े से कोई भी जुलूस नहीं निकाला जा सकता। ऐसा लगता है कि अंदर पार्किंग स्थल बना दिया गया है। वहां की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है मगर कोई रोकने और टोकने वाला नहीं है।
इसके अलावा गाजी उद्दीन हैदर द्वारा बनवाई गई छतर मंजिल वह भी काफी खस्ता हालत में है उसका पोर्च पहले ही गिर चुका है। यह ऐतिहासिक इमारत है और कई दशक से इसमे सेंट्रल ड्रग रिसर्च सेंटर चल रहा है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह इमारत जर्जर हो चुकी है। सीडीआरआई को करीब एक दशक पहले ही इसकी जानकारी दे दी गई थी पर इसे खाली नहीं किया गया।आज बादशाह गाजीउद्दीन हैदर की रूह जरूर तड़प रही होगी।
इसके अलावा नवाब आसिफुद्दौला के द्वारा बनवाया गया और लखनऊ की शान कहा जाने वाला रूमी दरवाजा भी खतरे में है इसमें भी दरारें साफ दिखाई देने लगी हैं। नीचे से गुजरने वाले ट्रक, बसों और गाड़ियों से पैदा होने वाले कंपन से पूरी इमारत का वजूद खतरे में है। लखनऊ की पहचान रूमी दरवाजा में जो दरार आई है यदि उसे जल्द दुरुस्त नहीं किया गया तो आसिफुद्दौला की यह धरोहर इतिहास के पन्नो से गायब हो जाएगी।
बड़ा इमामबाड़ा से लेकर छोटा इमामबाड़ा परिसर में लोगों ने मकान से लेकर दुकान तक खोल ली है। कहीं इमामबाड़े के सामने का हिस्सा अवैध कब्जे का शिकार है कहीं इमामबाड़े के पीछे का हिस्सा अवैध कब्जे का शिकार है ना तो इन इमारतों का सही ढंग से ख्याल रखा जा रहा है और ना ही इसकी मरम्मत की जा रही है ऐसा लग रहा है कि सरकार ही चाहती है कि इन इमारतों का निशान मिट जाए। अवध को बसाने वाले बादशाहों की निशानियां मिटती जा रही हैं और जिनका कोई योगदान नहीं उनके जगह जगह स्टेचू और स्मारक स्थापित किए जा रहे हैं यानी आने वाली नस्लों को धोखा दिया जा रहा है। छोटा इमामबाड़ा का हाल यह है यहां पर लोगों ने पूरी तरह से कब्जा कर रखा है। कहीं होटल कहीं ठेला कहीं चाय की दुकान कहीं कुछ और, यहां तक के कुछ की रसोई भी इमामबाड़े के अंदर दिखाई देती है चाहे इमामबाड़े के सामने वाला हिस्सा हो चाहे इमामबाड़े के पीछे वाला हिस्सा, अंदर हो या बाहर हर तरफ अवैध कब्जा दिखाई देता है। जगह जगह रहने वाले परिवारों का कब्जा और चौकी चूल्हा उसकी सुंदरता और उसके जीवन को खत्म किए दे रहा है।
छोटा इमामबाड़ा से सटा हुआ हुसैनाबाद गेट का तीनों दर जर्जर हो चुका है उसकी भी जीवन लीला समाप्त होने की कगार पर है। उसके एक गेट पर होटल वाले का पूरी तरह से कब्जा है उस के नीचे बने हुई कोठरियों में उसके होटल का कार्य होता है जो कि अवैध है। शासन प्रशासन हुसैनाबाद ट्रस्ट पुरातत्व विभाग किसी को यह चीजें नहीं दिखाई देती। भ्रष्टाचार इस हद तक बढ़ चुका है कि नीचे से लेकर ऊपर तक हर व्यक्ति चाहे वह उच्च पद पर बैठा हुआ अधिकारी ही क्यों ना हो अपनी आत्मा और ज़मीर को बेच चुका है।
अगर ऐसे ही चलता रहा तो बहुत जल्दी यह निशानी भी इतिहास के पन्नों में सिमट करके रह जाएगी। बात कड़वी है लेकिन सच यही है कि जल्दी ही यह निशानियां सिर्फ किताबों में ही दिखाई देंगी
यह बानगी है लखनऊ की ऐतिहासिक ईमारतों की बदहाली की जिससे यह जाहिर होता है कि किस तरह ऐतिहासिक धरोहरों की अनदेखी की जा रही है और शहर ए अज़ा की रौनक मिटती चली जा रही है ।
जयहिंद।
सैय्यद एम अली तक़वी
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