इस्लाम में ताज़िया रखना फूल चढ़ाना के नजायज़ के सवाल पर एस,एन लाल का जवाब

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    करबला में आप किधर थे….ये आपके आज के फतवे से पता चलता है…!
    एस.एन.लाल
    बड़े अफसोस की बात है कि मुसलमान सिर्फ अपनी गद्दी और नाम की तरफ देखता है और उसको बचाने के लिए कुछ भी फतवे दिया करता है। अज़ादारी में ताज़िये, मातम व फूल-हार चढ़ाना नाजायज़ बताया जा रहा है। एस.एन.लाल
    जो बता रहे है उनसे सिर्फ एक सवाल है। परवरदिगार यानि खुदा को सजदा किस चीज़ पर इस्लाम में बताया गया है, सजदा खुदा की बनाई हुई चीज़ पर जायज़ है, यानि ज़मीन पर या वह पाल या लकड़ी की चटाईयों पर, जो पहले मस्जिदों में रखी रहती थी। एस.एन.लाल
    मौलाना ये बताये…आज जो आप आदमी के बनाये हुए कालीनों, दरियों व खुबसूरत मखमली जानमाज़ों पर सजदा कर रहे हो…! क्या वह जायज़ है। यानि वह इबादत जिस पर पूरा इमान टिका है उसमें इतनी बड़ी खोट… लेकिन खामोशी। एस.एन.लाल
    अज़ादारी अकी़दा है उसको करना न करना अपना फेल है… लेकिन रसूल (स.व.अ.) की नातिन ने अज़ादारी की, इसलिए रसूल व उनके ख़ानवादे को मानने वाला मुसलमान अज़ादारी कर रहा है। अज़ादारी को नमाज़ के बाद अहमियत देता है…!, अज़ादारी हर कस्बे, जिले और मुल्को के कल्चर के हिसाब से मनाई जाती है, जैसे हर कोई अपनी ज़बान में मातम और मजलिस करता है। तो अक़ीदे और कल्चर का मसला है, इसमें शिर्क और नजायज़ की गुनजाईश ही नहीं हैं क्योकि कोई भी हुसैनी अलम-ताज़िये को सजदा नहीं करता है..वह वसीला बनाता है। एस.एन.लाल
    मौलवी साहब को जब उनकी ताज़ीम में हार-फूल पहनाये जाते है… तो खुश होकर गर्दन लम्बी करके हार गले में डलवाते है…, क्यों…क्योंकि उन फूलों द्वारा अपनी ताज़ीम अच्छी लगती है।, और जिनके कारण आज खुद मुसलमान है उस अज़ीम शख़्स हुसैन (अ.स.) की शबीह (रिपलिका) की ताज़ीम करना नजायज़ लगती है…। एस.एन.लाल
    मौलाना अतहर सहाब की एक बात सामने रखता हूॅं…बाक़ी समझ ले आप किस ग्रुप के हैं।…आज आपको हज़ार चहाने वाले होने…कुछ साल पहले और कम, कमसिनी में और कम लोग जानने वाले होंगे और जब पैदा हुए होंगे तो सिर्फ मॉ और बाप के अलावा कोई नहीं जानता होगा।…एस.एन.लाल
    आगे समझे…!, इसी तरह आज आप जिस फिरके़ के होगे…उसमें लाखों लोग…, कुछ सौ0 बरस पहले उससे कम लोग होंगे, उससे 500 बरस पहले और कम लोग होंगे और तब कोई मुसलमानों के ग्रुप होंगा…लेकिन 1380 साल पहले करबला में सिर्फ दो ग्रुप थे…हुसैनी और यज़ीदी… तब यज़ीद भी अपने मुसलमान कहता था और अल्लाहो अकबर ही कहकर इमाम को क़त्ल किया था… तब आपके बाप-दादा किसकी तरफ थे…! ये आपके आज के फतवे से पता चलता है…! एस.एन.लाल

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